हर कोई लेखक नही आज,
हर कोई लिखता है आज एक दो को छोड़ कर ,,
आज कोई कलम से डायरी नही भरता,
दिन भर का हिसाब सोशल साइट्स पर होता है।
डायरियां खुद ब खुद वाक्या नही बतलाती हैं,
वाक्या याद दिला कर (पिछली सोच) यानी याद से तरोताज़ा भी करता है,
इक्तिफाखन डायरियां पढ़ने का वक़्त किसको कँहा अब,
जो अंगूठे को चलाने की आदत सी हो चुकी हैं,
यूँ ही गुज़रे वक़्त को देख उस दिन को गुनगुना सोच कर दोबारा साँसें रोक लेता हूँ।
हर कोई लेखक नही आज, लिखते सब किसी तौर से है।
बोलते जो लोग हैं वही बस लिखते सुनाते है।
दो तारफ़ा चलने,बोलने, देखने, ज़ीने वाले भी बहुत है,
फेसबुक तफ़रीह का घर नही हर किसी की निजी डायरी है।
निज़ी चीज़ो पर कितना ऐयतियाद बर्तना पड़ता है ये भी जानते हो आप.........
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