Wednesday, 8 August 2018




तुम्हारी आवाज़ महज़ एक तनख्वा होती।
माह के आख़िर तक सम्हाल कर ख़र्च करते।।

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...