Sunday, 26 August 2018



मेरे साथ ही क्यों तजुर्बेकार होता है,
न हाँथ मिला सकते न गले लिपट सकते है,,

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...