Saturday, 25 August 2018



एक रात बड़ी मय्यसर सी गुमनाम दर्ज है,
उसकी क़ामयाबी के पीछे चाँद भी जगा है,,

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...