Tuesday, 28 August 2018


दिन मज़दूरों से है ,रात जैसे क़िस्तों से है,
जिस पल तुम साथ बस वो वक़्त मेरा है,,

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...