Saturday, 25 August 2018

दीदार



तुम्हारी सूरत देखते ही कैसे उँगलियाँ थकां छोड़ देती है,
वर्षों का उदास चेहरा कैसे अपने ताले खोल देता है,,

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...