तार_वार दिल के
ये तार_वार दिल के सब टूट से गए,
तुम से मिलने की सारी रस्म टूट सी गईं,,
जिंदगी से जुगनू वाली रोशनी खो सी गई,
जिंदगी से तुम जब से रूठ सी गई हो,,
शायद बेवज़ह की बातें हुई होंगी ,
तुम जो रूठी हो शायद यही वज़ह होगी,,
दोबारा मिलने_मिलाने का कोई तो बहाना होगा,
या फ़िर कोई आज़माइश का ठिकाना न होगा,,
अगर तुम कभी कंही उलझ जाना,
संदेश में अपना पता तो बता जाना,,
तुम साथ न रहना कुछ दूर ही रहना,
बिना ख़बर हुए तुमको कुछ दूरी पर आशियाँ बना लेंगे,,
हर रोज एक उगते सूरज की तरह तुम्हे देखूंगा,
तुम बस गुज़रते वक़्त की तरह रोज़ शाम ले आना,,
हम उमीदों को बुला कर हर रोज़,
भोर के बाद चाय सुट्टे का लुफ़्त लेंगे,,
ऎसे ही तार ये दिल के सायद जुड़ जाये,
या फिर ख़्वाब के साथ ही ये जमाना गुज़र जाए.......,,
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