musāfiroñ se mohabbat kī baat kar lekin
musāfiroñ kī mohabbat kā e'tibār na kr
अकेले चला बग़ैर हाँथ थामे, हाँथों में हाँथ माँगा था, पर तुम्हे मेरे हालातों से बदनाम कँहा होना था, ज़ानिब मैं थोड़ा दूर क्या गया,लोगो ने बड़ा समझ लिया, वो मेरा अपना है कह कह कर इस पर "क़ाफ़िला" जमा लिया, अकेले ही चला जिस सफ़र में मैं तो फ़िर ज़ानिब ये "क़ाफ़िला" अपनो का कँहा बना लिया।
हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...
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