Thursday, 14 June 2018

जून उपहार ......




तुम जो तय कर चली सफ़र हो,
जिस में न थकी न झुकी हो,,

इतनी थकां के बावजूद भी ,
हुई न कभी जो आह है,,

वक़्त भी तुम से सहमा है,
तुम से तैस में अब वो रुस्वा है,,

तुम न डरना तुम न थकना,
बस अपने वजूद के लिए डटे रहना ,,

जो दर्द तुम्हारा आज है वही,
वही तुम्हारी सफलता का अर्चन है,,

तुम्हे सफ़र जो सपनो का तय करना है,
तो ये जैसे तैसे सफ़र बस तुम्हे ही तय करना है,,

आह भरो या कहारों तुम अकेले,
बेमन दर्द को मज्जे में बदलो तुम,,

दिल खोल  कर आज़ाद बोलना और चलना है,
इन काटो को तुम्हे अब पंखुड़ी समझ कर चलना है,,

तुम्हारी प्रेरणा ही दर्द का निवारण है,
ट्रामिंडा नहीं तुम्हारी द्रढ़ता ही दर्द नासक है,, 

No comments:

Post a Comment

हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...