Saturday, 23 June 2018




तड़पती रूह को आसना मिल गया होता,
ग़र मैं तुम में तुम मुझ में फ़ना हो गए होते,,

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...