अकेले चला बग़ैर हाँथ थामे, हाँथों में हाँथ माँगा था, पर तुम्हे मेरे हालातों से बदनाम कँहा होना था, ज़ानिब मैं थोड़ा दूर क्या गया,लोगो ने बड़ा समझ लिया, वो मेरा अपना है कह कह कर इस पर "क़ाफ़िला" जमा लिया, अकेले ही चला जिस सफ़र में मैं तो फ़िर ज़ानिब ये "क़ाफ़िला" अपनो का कँहा बना लिया।
Friday, 29 June 2018
Tuesday, 26 June 2018
तार_वार दिल के
ये तार_वार दिल के सब टूट से गए,
तुम से मिलने की सारी रस्म टूट सी गईं,,
जिंदगी से जुगनू वाली रोशनी खो सी गई,
जिंदगी से तुम जब से रूठ सी गई हो,,
शायद बेवज़ह की बातें हुई होंगी ,
तुम जो रूठी हो शायद यही वज़ह होगी,,
दोबारा मिलने_मिलाने का कोई तो बहाना होगा,
या फ़िर कोई आज़माइश का ठिकाना न होगा,,
अगर तुम कभी कंही उलझ जाना,
संदेश में अपना पता तो बता जाना,,
तुम साथ न रहना कुछ दूर ही रहना,
बिना ख़बर हुए तुमको कुछ दूरी पर आशियाँ बना लेंगे,,
हर रोज एक उगते सूरज की तरह तुम्हे देखूंगा,
तुम बस गुज़रते वक़्त की तरह रोज़ शाम ले आना,,
हम उमीदों को बुला कर हर रोज़,
भोर के बाद चाय सुट्टे का लुफ़्त लेंगे,,
ऎसे ही तार ये दिल के सायद जुड़ जाये,
या फिर ख़्वाब के साथ ही ये जमाना गुज़र जाए.......,,
Saturday, 16 June 2018
माँ_सी नहीं वो माँ है,
माँ_सी नहीं वो माँ है,
जब तक हाँथ नहीं रखती है,
नींद बसर नहीं करती है........
चैन_ओ सुकून नहीं रहता है,
सब के सब रक्स बेअसर रहते है,
जब तक माँ हाँथ नहीं रखती है. ......
मेरे होने का पता नहीं रहता है,
कामयाबी का ठिया नहीं रहता है,
वो रात हसीं नहीं रहती है........
माँ जब तक हाँथ नहीं रखती है,
पापा का हाँथ नहीं रोकती......
कुछ अपना नहीं लगता है,
चैन ओ सुकून नहीं रहता है,
माँ_सी नहीं वो माँ है। ......
सब के सब रिश्ते है बेवक्त भाव के,
उनसे सुकून नहीं मिलता पर वो माँ बाप है ,,
Friday, 15 June 2018
-: हँसती खिलखिलाती दोस्त हमारी :-
-: हँसती खिलखिलाती दोस्त हमारी :-
हँसती है खिलखिलाती है
अतरंग अपना हर पल बनाती है
प्यारी दुलारी है......
रिश्तों के बाद वो दोस्त भी निराली है
हमेशा हँसती और हँसाती है
कई अज़ब अतरंग महौल बनाती है
जैसे सूरज और चाँद को एक साथ ले आती है.....
कंही के सवाल कंही को मिला जाती है
आखिर में मुद्दा खाने पर ले आती है
खाने पर मरती और पैसों से दिल लगाती है......
बेवक़्त को वक़्त से मिलती है
दोनों पहलुओ में वो हाथ थाम कर चलती है
लुटा चुके उम्र जो उसे देख कर
समय को फिर पाने के गाह लगते है ...
हमेशा हँसती खिलखिलाती है
अपनी अदाकारी से सबका दिल लुभा ले जाती है.......
किरदारों के बिना कई किरदार बना जाती है
सबकी दुलारी प्यारी एक दोस्त हमारी है
उम्र दर्ज जैसे भरी शब्दों से चिढ़ने वाली है....
वो फिर भी सबकी दुलारी है
"ख्वाइशों को सिर पर सवार न कर,
चलती है ख्वाइशों पर सवार हो कर ,,"
निस्वार्थ भाव से साथ बिना भाव के हाँथ
बढ़ा कर सबके साथ चलती है। .......
ऎसे ही सबकी दुलारी प्यारी दोस्त हमारी है
हँसती खिलखिलाती सबकी दुलारी है दोस्त हमारी है.....
किसी की बहन किसी की दोस्त किसी की बेटी और शागिर्द,
वो सबकी दुलारी हँसती खिलखिलाती दोस्त हमारी भी है। ....
"सूरज किसी का अक्स न छीने,
खुदा तू हॅसने वालों की मुस्कान न छीने ,,"
(डेडिकेटेड फॉर सपना )
आकाश कुमार धुरिया
हँसती है खिलखिलाती है
अतरंग अपना हर पल बनाती है
प्यारी दुलारी है......
रिश्तों के बाद वो दोस्त भी निराली है
हमेशा हँसती और हँसाती है
कई अज़ब अतरंग महौल बनाती है
जैसे सूरज और चाँद को एक साथ ले आती है.....
कंही के सवाल कंही को मिला जाती है
आखिर में मुद्दा खाने पर ले आती है
खाने पर मरती और पैसों से दिल लगाती है......
बेवक़्त को वक़्त से मिलती है
दोनों पहलुओ में वो हाथ थाम कर चलती है
लुटा चुके उम्र जो उसे देख कर
समय को फिर पाने के गाह लगते है ...
हमेशा हँसती खिलखिलाती है
अपनी अदाकारी से सबका दिल लुभा ले जाती है.......
किरदारों के बिना कई किरदार बना जाती है
सबकी दुलारी प्यारी एक दोस्त हमारी है
उम्र दर्ज जैसे भरी शब्दों से चिढ़ने वाली है....
वो फिर भी सबकी दुलारी है
"ख्वाइशों को सिर पर सवार न कर,
चलती है ख्वाइशों पर सवार हो कर ,,"
निस्वार्थ भाव से साथ बिना भाव के हाँथ
बढ़ा कर सबके साथ चलती है। .......
ऎसे ही सबकी दुलारी प्यारी दोस्त हमारी है
हँसती खिलखिलाती सबकी दुलारी है दोस्त हमारी है.....
किसी की बहन किसी की दोस्त किसी की बेटी और शागिर्द,
वो सबकी दुलारी हँसती खिलखिलाती दोस्त हमारी भी है। ....
"सूरज किसी का अक्स न छीने,
खुदा तू हॅसने वालों की मुस्कान न छीने ,,"
(डेडिकेटेड फॉर सपना )
आकाश कुमार धुरिया
Thursday, 14 June 2018
जून उपहार ......
तुम जो तय कर चली सफ़र हो,
जिस में न थकी न झुकी हो,,
इतनी थकां के बावजूद भी ,
हुई न कभी जो आह है,,
वक़्त भी तुम से सहमा है,
तुम से तैस में अब वो रुस्वा है,,
तुम न डरना तुम न थकना,
बस अपने वजूद के लिए डटे रहना ,,
जो दर्द तुम्हारा आज है वही,
वही तुम्हारी सफलता का अर्चन है,,
तुम्हे सफ़र जो सपनो का तय करना है,
तो ये जैसे तैसे सफ़र बस तुम्हे ही तय करना है,,
आह भरो या कहारों तुम अकेले,
बेमन दर्द को मज्जे में बदलो तुम,,
दिल खोल कर आज़ाद बोलना और चलना है,
इन काटो को तुम्हे अब पंखुड़ी समझ कर चलना है,,
तुम्हारी प्रेरणा ही दर्द का निवारण है,
ट्रामिंडा नहीं तुम्हारी द्रढ़ता ही दर्द नासक है,,
happy eid
वक़्त कम पड़ता है अच्छे वक़्त को थाम कर रखने में ,पर्व को दो दिन का करने में कोशिस खुदा ने भी कम न की,,
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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...