Monday, 2 July 2018





फ़ैमी के शिकार न हो मेरे यार,
अंधरे में बसर करने वालो के 
नाम और शक्लें नहीं होती है,, 


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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...