चाँद का ठिया ठिकाना रहता वंही,
देखो ज़रा सूरज से चाँद की बेरुखी,,
चाँद को नज़र न लग जाए किसी की कंही,
चाँद हो न जाए हसीन लोगो का कंही,,
दिन हो या रात हो चाँद होता वंही
दूर होना जैसे वहम हो नज़रों का,,
नज़र नहीं उठती दिन में चाँद की ओर,
ज़ोर तेज के साथ होती सूरज की पहरेदारी,
बचाती जो चाँद को नजरों से है, वो सूरज की तपिश है,
ये आग ही तो चाँद के लिए इकतरफ़ा सूरज की इश्कदारी है..
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