Wednesday, 16 May 2018

“आप और आप की तस्वीर”



मिर्च वाले हाथो से मिजती हुई आँखों की सुबह और आप की लाई गई चाय के साथ कुछ समय आप के साथ, फिर आप की आँखों का नज़ारा और 10:00 बजे की मजबूरी इस ढर्रे को होते हुए भी काफी समय गुज़र गया था आँखों के पास से आप कब ओझल हो गई हमेसा के लिए लाख कोशिस की खोजने की फिर भी आप नहीं आप कोई ज़िक्र नही सुना कंही से ...........
आज सिर्फ़ आप की तस्वीर ही मौज़ूद है आप के बदौलत हर पल सुबह-शाम, चाय-पानी के साथ गुस्सा-प्यार, हँसी-दुःख सभी में साथ रहती है, तस्वीर को बेझिझक बिना किसी पाबन्दी से छू और देख सकता हू, वो तस्वीर भी आप की ही तरह अलहदा और मेरी अजीज़ है जब हम सामने होते तो आप देखती नहीं थी आज तस्वीर सिर्फ हमें ही देखती रहती है एकटक बगैर कंही उलझे .......
अब आदत भी पड़ गई है इस सिलसिले की "पहले की तरह आप की मौजूदगी की तलब्गार नहीं होती है" अगर होती भी तो बेक़ाबू नहीं होती है तस्वीर आप की वजूद को हमारी जिंदगी में बरक़रार रखती है, दिन की थका के बाद रात को मिलने के इन्तजार में  तलब अब खो सी जाती है, तस्वीर में से मै आप को हकीकत में बाहर निकल कर मिलते हुए महसूस करता हू.........
कभी-कभी तकलीफ होती है पास जाते वक्त दीवार से सर टकरा जाता है एक दो बार की दस्तक देने के बाद आप आ ही जाती हो........
ऐसा है जैसा आप के दरवाजे पर दस्तक देना ज्यादा होश में रहने वाले लोग होश से बाहर जाने नहीं देते, आप से मिलने के बाद सारे गिले शिकवे ख़त्म हो से जाते है।

आप और आपकी तस्वीर के सहारे रात भर बहस और नोक-झोंक के सहारे रात गुज़र जाती है फिर अगले दिन की शुरुआत होने को अ जाती है।

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