Thursday, 17 May 2018

रोज़ाना की सुबह

:- रोज़ाना की सुबह :-





हर रोज एक नई सुबह तो आती है,

ख्याल बस रोज रूठ रूठ से जाते है,

कभी तुम तो कभी हम दो से एक हो जाते है,
अपनी वजाहों में उलझे ये रूठा दिन गुज़ारते है,

तुम्हारा वक़्त है या वक़्त से तुम्हारा याराना,
तुमसे कैसे मिलू ये वक़्त मुझ से है बेगाना,

तुमसे ये दिल-लगी है या सिर्फ़ वक़्त बिताना है,
तसव्वुर की आहट है या तन्हाईयों का फ़साना है,

अगर तू ही मंजिल है तो सफ़र धुंधला क्यूँ है,
तुझे देखना सुकूं है तो ख़ाब तेरे साथ के क्यूँ है,

एक रहगुज़र की तलाश कर चलो मुसाफ़िर हो ले,
तुम सब अपनों से अब हम चलो बेगाने हो ले....,
                                                                #आकाश कुमार 

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