Saturday, 26 May 2018

सूरज से चाँद की इश्कदारी...



चाँद का ठिया ठिकाना रहता वंही, 
देखो ज़रा सूरज से चाँद की बेरुखी,,

चाँद को नज़र न लग जाए किसी की कंही,
चाँद हो न जाए हसीन लोगो का कंही,,

दिन हो या रात हो चाँद होता वंही
दूर होना जैसे वहम हो नज़रों का,,

नज़र नहीं उठती दिन में चाँद की ओर,
ज़ोर तेज के साथ होती सूरज की पहरेदारी,

बचाती जो चाँद को नजरों से है, वो सूरज की तपिश है,
ये आग ही तो चाँद के लिए इकतरफ़ा सूरज की इश्कदारी है..



Thursday, 24 May 2018

-: उपलब्धि :-



ये जो अहम दिन है इसको यूँ न गुज़ार दो,
ऱोज दोहराने में नही सीखने में भी वक़्त गुज़ार दो,, 
#आकाश कुमार 


Tuesday, 22 May 2018

Distance .......


हाँथों में हाँथ थामे रखने का वादा किया था ,
कसूर किसी का नही शायद फ़ासला ज़्यादा था,,






Monday, 21 May 2018

-: लफ्ज़ :-

-: लफ्ज़ :-



किसी से मिला करो तो याद भी रखा करो,
हर एक लफ्ज़ों का द्वीपक्ष हिसाब भी रखा करो,,

कल हो न खीज़ तुम्हे अपनों के ही लफ्ज़ों से,
वो मेरे ये तुम्हारे है इनका हिसाब भी रखा करो,,

लफ्ज़ों का वज़ूद ठहरता नहीं लम्बे वक़्त तक,
लफ्ज़ों के माइने भी नये दौर में तब्दील हो जाते है,,

लफ्ज़ों को याद्गार किस्सों में बुनना हो तो,
लफ्जों को सही वक़्त पर इस्तमाल किया करो,,

कहे सुने लफ्ज़ के इतिहास भुला दिए जाते है,
लफ्ज़ों को गुलाम बनाना दोनों दौर को आना चाहिए,,
                                                        काश कुमार 

Thursday, 17 May 2018

रोज़ाना की सुबह

:- रोज़ाना की सुबह :-





हर रोज एक नई सुबह तो आती है,

ख्याल बस रोज रूठ रूठ से जाते है,

कभी तुम तो कभी हम दो से एक हो जाते है,
अपनी वजाहों में उलझे ये रूठा दिन गुज़ारते है,

तुम्हारा वक़्त है या वक़्त से तुम्हारा याराना,
तुमसे कैसे मिलू ये वक़्त मुझ से है बेगाना,

तुमसे ये दिल-लगी है या सिर्फ़ वक़्त बिताना है,
तसव्वुर की आहट है या तन्हाईयों का फ़साना है,

अगर तू ही मंजिल है तो सफ़र धुंधला क्यूँ है,
तुझे देखना सुकूं है तो ख़ाब तेरे साथ के क्यूँ है,

एक रहगुज़र की तलाश कर चलो मुसाफ़िर हो ले,
तुम सब अपनों से अब हम चलो बेगाने हो ले....,
                                                                #आकाश कुमार 

Wednesday, 16 May 2018

#HAPPY RAMDAAN




 जम जम के पानी सा पाक ये दिल हुआ है,
खुदा की नवाज़िशें उंस पाने का सिलसिला शुरू हुआ है,,







“आप और आप की तस्वीर”



मिर्च वाले हाथो से मिजती हुई आँखों की सुबह और आप की लाई गई चाय के साथ कुछ समय आप के साथ, फिर आप की आँखों का नज़ारा और 10:00 बजे की मजबूरी इस ढर्रे को होते हुए भी काफी समय गुज़र गया था आँखों के पास से आप कब ओझल हो गई हमेसा के लिए लाख कोशिस की खोजने की फिर भी आप नहीं आप कोई ज़िक्र नही सुना कंही से ...........
आज सिर्फ़ आप की तस्वीर ही मौज़ूद है आप के बदौलत हर पल सुबह-शाम, चाय-पानी के साथ गुस्सा-प्यार, हँसी-दुःख सभी में साथ रहती है, तस्वीर को बेझिझक बिना किसी पाबन्दी से छू और देख सकता हू, वो तस्वीर भी आप की ही तरह अलहदा और मेरी अजीज़ है जब हम सामने होते तो आप देखती नहीं थी आज तस्वीर सिर्फ हमें ही देखती रहती है एकटक बगैर कंही उलझे .......
अब आदत भी पड़ गई है इस सिलसिले की "पहले की तरह आप की मौजूदगी की तलब्गार नहीं होती है" अगर होती भी तो बेक़ाबू नहीं होती है तस्वीर आप की वजूद को हमारी जिंदगी में बरक़रार रखती है, दिन की थका के बाद रात को मिलने के इन्तजार में  तलब अब खो सी जाती है, तस्वीर में से मै आप को हकीकत में बाहर निकल कर मिलते हुए महसूस करता हू.........
कभी-कभी तकलीफ होती है पास जाते वक्त दीवार से सर टकरा जाता है एक दो बार की दस्तक देने के बाद आप आ ही जाती हो........
ऐसा है जैसा आप के दरवाजे पर दस्तक देना ज्यादा होश में रहने वाले लोग होश से बाहर जाने नहीं देते, आप से मिलने के बाद सारे गिले शिकवे ख़त्म हो से जाते है।

आप और आपकी तस्वीर के सहारे रात भर बहस और नोक-झोंक के सहारे रात गुज़र जाती है फिर अगले दिन की शुरुआत होने को अ जाती है।

हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...