Wednesday, 5 September 2018



हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है,
जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है।



रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे जाते है,
बार बार दोहरा कर उन पन्नों के हर्फ़ से रिस्ते जोड़े जाते है।

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हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...