Wednesday, 5 September 2018



हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है,
जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है।



रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे जाते है,
बार बार दोहरा कर उन पन्नों के हर्फ़ से रिस्ते जोड़े जाते है।

Tuesday, 4 September 2018


चलते फ़िरते शहर के नीचे एक शहर बस्ता है,
एक डर रहता है ये इमारतें ढा न जायें कभी,,

इनको खड़ा करने में दिल और वक़्त दोनो लगता है,
टूटे दिल से हिम्मत जुटाना भी अब मुश्किल लगता है,,

तुम्हारे केशुओं की तरह छत का ठिकाना नही लगता है,
हँसते खेलते, चलते फ़िरते शहर के नीचे भी एक शहर बस्ता है।

Akash Kumar Dhuria




Monday, 3 September 2018


#Dedication      #struggle      #goals

विशाल चाह द्रढ़ है, बस पाँव दरख़्त में फसें है।
उम्मीद है, दूसरी दरख़्त तो मिले पाँव छुटाने को।।

हम से भी हसीन उनकी किताबें होती है, जो किताबों पर उँगलियों के रक़्स होते है। रातों को न जाने कितने पन्नें कितनी मरतबं पलटे ...